कोरोना संक्रमण के शुरुवाती दौर में ही जब बच्चों की छुट्टियाँ लगा दी गईं तो एक-आधा हफ्ता तो यूँही खेल मस्ती में आसानी से निकल गया पर उसके बाद जब ये लॉक डाउन का दौर शुरू हुआ तो बच्चों की चिंताएं भी बढ़ गईं| जब हमारे शिक्षक साथियों ने बच्चों से फोन पर संपर्क किया तो अधिकतम बच्चों के सवाल थे- ‘स्कूल कब खुलेंगे? हम अपने दोस्तों को बहुत याद कर रहे हैं? बाहर खेल भी नहीं सकते, हम इतने दिनों तक नहीं पढ़ेंगें तो पढ़ना लिखना सब भूल जायेंगे!’ बच्चों की ये चिंताएं वांछित हैं| कुछ बच्चों ने यह चिंताएं भी जतायीं कि ‘हमारे घर कुछ खाने को नहीं है, ऐसा ही चलता रहा तो क्या हमें भूखे रहना पड़ेगा?’ हमारे बच्चे जिन परिस्थितियों में रहते हैं वहां उन्हें पढ़ने लिखने का कोई माहौल नहीं मिल पाता तो यह बात तो वाजिब है कि लगातार इतने दिनों के अंतराल के चलते उनका पढ़ना लिखना प्रभावित होगा और सभी के पास स्मार्ट फोन जैसे संसाधन भी नहीं हैं जिससे की उनको ऑनलाइन पढ़ने के लिए सामग्री भेज पाएं| तो बच्चों की चिंताओं को कम करने के लिए यह प्रयास किया गया कि हम बच्चों से फोन पर बातचीत करते रहें| राहत सामग्री के साथ ही बच्चों तक स्टोरी books और वर्कशीटस भेजने के प्रयास करें|
चूँकि इस समय बच्चे भी एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं जो कि उन्हें मानसिक रूप से भी प्रभावित कर रहा है, बातचीत के दौरान यह समझ भी आया की आस पास जो चल रहा है उसको लेकर बच्चों के मन में कई सारे सवाल हैं। कुछ सवाल परिस्थिति से जुड़े हैं, तो कुछ हमारी व्यवस्था पर भी सवाल उठाते हैं। बच्चों द्वारा कही गयीं और लिखी गयीं इन बातों और कहानी-कविताओं से, शिक्षा से जुड़े हम वयस्कों को भी कई बातें सोचने को मिलती हैं। एक ऐसे माहौल में जहाँ ‘नॉर्मल’ की परिभाषा ही बिलकुल बदल गयी है, शिक्षा के अर्थ, जीवन जीने और अपने आप को और एक-दूसरे को समझने के मायने भी बदलते दिख रहे हैं|
जैसे रानी जो कक्षा 8 वीं की छात्रा है उसने बताया कि ‘हमारी बस्ती में इतनी मुश्किलें हैं – लोग खाने पीने को लेकर परेशान हैं, बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, घर से बाहर नहीं निकल रहे, हमारे घर भी बहुत छोटे हैं, लोग काम करने से मोहताज़ हो गए, ऐसे में हमारे देश की सरकार को सबके लिए कुछ व्यवस्था करना चाहिए जैसे कोई ऐसा एप बनाते जिस पर बच्चे अपने विचार, कहानी, कविता शेयर करें जो हर बच्चे की पहुँच में हो ताकी बच्चे बोर न हो, कुछ करते रहें| लोगों को काम मिले पर ऐसा कुछ नहीं हुआ ताली, थाली और मोमबत्ती से क्या होता है?’
इन परिस्थितियों में पाठ्यक्रम को फ़ॉलो करना एक अतिरिक्त दबाव बन सकता है इसलिए हमने यह रास्ता चुना की बच्चे अच्छी कहानियाँ पढ़े और कुछ हल्की फुल्की वर्कशीट के साथ ही अपने मन में चल रहे विचारों को अपनी परिस्थितियों को लिखें, जो आने वाले समय में पाठ्यक्रम के लिए एक उम्दा सामग्री का काम करेगा और वर्तमान में रुचिपूर्ण तरीके से बच्चों को पढ़ने लिखने से जोड़े रखेगा|
बच्चों को वर्कशीट मिली तो वे बहुत खुश हुए|इतने दिन बाद किताबें देखकर वे तुरंत झोले से किताबें लेकर पढ़ने लगे और इसके साथ ही अपने विचारों को बड़ी रचनात्मकता से प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनमे से सरगम बस्ती के कुछ बच्चों की रचनाएँ प्रस्तुत हैं –
जब से लॉक डाउन लगा है, खाने की बहुत दिक्कत आ रही थी| पर सरकार ने राशन बांटा और हमारी मुस्कान वालों ने भी बांटा, हमारी बहुत मदद करी| अब सभी के घर रोज खाना बन पा रहा है|
जब राशन ख़त्म हो जाता है तो मुस्कान वाले दुबारा राशन भिजवा देते हैं| हमारी मम्मी भी हमें भूखा नहीं रहने देती जब राशन ख़त्म हो जाता है तो वो कहीं से भी लायें पर राशन ले ही आती हैं|
लॉक डाउन की वजह से हम घर के बाहर मैच तक नहीं खेल पा रहे हैं|
नुमान, कक्षा 6, सरगम बस्ती
जो ये लॉक डाउन लगा है इसके कारण हम कहीं आ जा नहीं पा रहे| हमें हमारे दोस्तों की बहुत याद आती है| वेन में बैठकर स्कूल जाते समय बहुत मजे आते थे अब वो मजे नहीं आते| स्कूल में भी दोस्तों के साथ और पढ़ने में जो मजा आता था अब वो मजा नहीं रहा| हम माता मंदिर तक तो नहीं जा सकते पर एम. पी. नगर के आस पास घूम लेते है| आसपास की सड़के भी सूनी सूनी हैं| मैं बस ये ही सोचता हूँ कि स्कूल कब खुलेगें?
अमन, कक्षा 5, सरगम बस्ती
जहाँ से कोरोना आया है वहीं पर तू जाएगा|
अब कैसे तू महामारी फैलाएगा?
एक सेनिटाईजर तुझे अपने घर भिजवाएगा|
तुझको भगाने के लिए मोदी प्लेट बजवायेगा|
9 बजे 9 मिनट के लिए मोमबत्ती जलवायेगा|
इण्डिया में फिर आने से पहले तू 10 बार घबराएगा|
हिन्दुस्तानी का तू खून नहीं चूस पायेगा|
डॉक्टर तुझे तेरी ओकात बताएगा|
रानी सनोने, कक्षा 8, सरगम बस्ती
लॉक डाउन में बच्चों के कदम तो थम गए पर कलम नहीं, बच्चों और उनकी कलम को गतिमान बनाने के लिए हमारे प्रयास जारी रहेंगे और बच्चों की रचनाएँ भी साझा करते रहेंगे|
लेखन – नीतू यादव और शशिकला नारनवरे
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